Saturday, June 2, 2012


हिरो

बिश्नोईयों की पावन धरा पर आया एक दिन फ़िल्मी खान,
पोल में ढोल बजाऊंगा हिरण मारकर खाऊंगा, थे उसके अरमानA
मैंने बनाई है बॉडी कौन मुझ पर है भारी?
मांस तो खाऊंगा ही मृग का हड्डियाँ भी चबाऊँगा सारी A
देखो मेरी जीप में हिरोईनी भी है ढेर,
मैं जो मर्ज़ी वो करूँ इस जंगल का हूँ मैं शेर A
सब मुझ पर मरते हैं सब हैं मेरे फैन,
बुढउ  होकर यंग कहाऊं देखो दारु से लाल मेरे दो नैन A
रात कारी अंधियारी समय का हुआ ऐसा फेर,
बॉडी वाले हिरो के सामने गया बिश्नोई सवा शेर A
गर्जना से कलेजा फटा हिरो भागा चप्पल छोड़,
आज बॉडी कम नहीं आएगी ड्राईवर जल्दी जीप को मोड़ A
गधे के सींग सा गायब हुआ भागा सिर पर रख पैर,
हिरण का तो कभी फोटो भी ना देखूं मांगू बिश्नोईयों से खैर A
प्रणाम करो उनको रक्षा की जिन्होंने पंथ श्रेष्ठ के सम्मान की,
दोनों हाथ धरो सिर पर जय बोलो गुढा बिश्नोईयान की,
जय बोलो गुढा बिश्नोईयान की A A

संतोष पुनिया

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