बर्बर
समय वर्तमान से 3000
वर्ष
पूर्व
(बिश्नोइज्म की
स्थापना में अभी 2472 वर्ष बाकी थे)
वर्तमान भारत भूमि
की उत्तर-पश्चिम दिशा में बसे द्रुमदोह नामक राज्य में अनंतकाल से बहती हुई विशाल हिमदुग्धा
नदी के किनारे फैला दुग्धोल नामक विशाल वन था. हिमदुग्धा का जल हिम के समान शीतल
और दूध के समान पौष्टिक था. दुग्धोल वन में असंख्य प्रकार के पशु और पक्षी हिमदुग्धा
का पानी पिते और ख़ुशी-ख़ुशी रहा करते थे. किन्तु दुग्धोल के प्राणियों के प्राणों
पर संकट तब आ जाता जब द्रुमदोह का क्रूर और घोर मांसाहारी सम्राट
सर्मिश्क, जिसे द्रुमदोह की प्रजा पीठ पीछे बर्बर कहा करती थी, उस जंगल में शिकार
करने पहुँच जाता.
कहते हैं नाटे कद और
काले रंग के निर्दयी बर्बर को केवल दो ही कामों में आनंद आता था.
युद्ध एंव शिकार.
अलग-अलग प्रजातियों
के प्राणियों को मारकर उनका मांस खाना सम्राट बर्बर का सबसे प्रिय शौक था और
मृत्यु से पहले संसार में पाए जाने वाले अधिकतम प्रकार के प्राणियों का मांस खाना
उसका लक्ष्य था. भूतकेशी ने बर्बर के मन में
यह बात स्थित की थी की प्रत्येक प्राणी के मांस के साथ ही उस प्राणी का सबसे प्रमुख
गुण उसमे आ जायेगा.
इसी मिथ्या विश्वाश
से प्रेरित बर्बर थोड़े-थोड़े दिनों के बाद अपने सैनिकों के साथ दुग्धोल आता और बहुत
सारे पशु-पक्षियों को निर्दयतापूर्वक मार कर अपने साथ ले जाता. उसके प्रशिक्षित
सैनिक उसके आदेश पर वृक्षों पर बने हुए पक्षियों के घोंसलों से अंडे चुरा लिया
करते.
जो भी व्यक्ति उसके
पास किसी नए जीव-जंतु को पकड़ कर लाता वह उसे सोने की मुद्राएँ पुरस्कार में दिया करता. उसने अपने साम्राज्य का बहुत विस्तार
किया. कभी ना हारने वाले असंख्य पराक्रमी सम्राटों को उसने धूल चटा दी थी. उसकी सेना शत्रु सेना को गाजर मूली
की तरह काट डालती थी और राज्यों को ध्वस्त कर देती थी. दुग्धोल में से पकडे गये
हाथीयों की पूंछो पर आग लगा कर वह उन्हें दुश्मन की सेना पर छोड़ दिया करता. जलते
हुए पागल हाथी दुश्मन की सेना को सम्भलने से पहले ही कुचल डालते. वह युद्ध में
पकडे गये राजाओं के सिर काटकर अपने महल के बाहर लटका दिया करता था. युद्ध में जीते
हुए राज्य के सब नागरिकों को वह दास बना लिया करता. क्रूरता ही उसकी शक्ति थी.
दुग्धोल के जानवरों
का अस्तित्व बर्बर के द्वारा किये जाने वाले अंधाधुंध शिकार के कारण संकट में था. ऐसा
प्रतीत होता था की शीघ्र ही दुग्धोल वन जीव-जंतुओं से वंचित हो जायेगा.
घोर निराशा एंव संकट
से भरे इसी समयकाल में एक अद्भुत, अनोखी कहानी का प्रारम्भ तब हुआ जब दुग्धोल वन में
बर्बर की निर्दयता से अभी तक बची हुई एक मोरनी ने बसंत ऋतू आते-आते चार अंडे दिए. उन्नतीसवें
दिन अण्डों में से बच्चे निकले. यही वह घटना थी जिस से यह अद्भुत कहानी आरम्भ हुई.
द्रुमदोह साम्राज्य का भविष्य बदलने वाला था, दुग्धोल वन का भाग्य बदलने वाला था.
मोरनी के चारों में
से एक बच्चा बाकी तीनों से बिलकुल अलग था. वह बिलकुल दूध जैसे सफ़ेद रंग का था. वह
बहुत ही सुंदर था और अपने तीनों पीले और भूरे रंग के पंखों वाले भाई-बहनों से
बिलकुल अलग दिखता था. समय बीतता गया और चारों बच्चे बड़े होते गये. तीन बच्चों के
पंखों का रंग बदलकर नीला-हरा हो गया लेकिन सफ़ेद बच्चे का रंग वैसा का वैसा एकदम
सफ़ेद बना रहा. वे अपनी माँ के साथ दुग्धोल वन की सब दिशाओं में खूब उड़ते, खेलते और
तरह-तरह के फल खाते.
फिर आखिर वह दिन आ
गया जब घटनाएँ आरम्भ हुई. यह वह दिन था जिस दिन प्रात: ही सम्राट बर्बर शिकार करने
दुग्धोल में आ धमका. इस बार वह पहले से भी अधिक सैनिकों के साथ आया था. उसने अपने
सैनिकों के साथ वन में डेरा डाल दिया और शिकार आरम्भ कर दिया. पूरा दिन अंधाधुंध शिकार
किया गया. ऐसा शिकार पहले कभी नही हुआ था. हिरणों, नीलगायों
आदि के पीछे पालतू शिकारी कुत्ते छोड़ दिए गये, जानवरों की गुफाओं और बिलों के आगे
धुआं कर दिया गया. जंगल में आग लगा दी गयी. स्थान-स्थान पर लगाये गये शिकंजों में
बहुत सारे जानवर फंस गये. पक्षियों को गुलेल और तीरों से मार गिराया गया. हाथियों
को गहरे गड्ढ़ों में गिराया गया. शेर और
चीतों को या तो मार डाला गया या पिंजरों में बंद कर लिया गया. कुछ ऐसा ही हाल लोमड़ी,
भालू, गीदड़, सियार, भेडियो, खरगोश, बंदरों, लंगूरों, नेवलों, जंगली सूअरों, जंगली गधों,
भैंसों आदि का हुआ. प्राणघातक विषधारी साँपों को भी नही छोड़ा गया. दुग्धोल वन में
कोहराम मच गया. सभी जीव-जंतु प्राण बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे. जानवरों की
लाशों के ढेर लगा दिए गये. बहुत सारे जानवर या तो हिमदुग्धा में डूबकर मर गये या
नावों में मौजूद बर्बर के सैनिकों के द्वारा मार डाले गये. पशु-पक्षियों के रक्त कि
नदी बह निकली. हिमदुग्धा का सफ़ेद पानी लाल हो गया.
तभी बर्बर ने उस
अद्भुत सफ़ेद मोर को अपने तीनो भाई बहनों और माँ के साथ वन के आसमान में उड़ते हुए
देखा. धुंए से भरे दुग्धोल के काले आसमान में वह सफ़ेद हंस की तरह चमक रहा था. माँ
उनको मृत्यु के खेल में फसे इस अभागे वन से सुरक्षित निकलना चाह रही थी. गंदे पीले
दांतों से भरा बर्बर का बदबूदार मुंह खुला का खुला रह गया. उसकी मिचिमिचियाई आँखें
फ़ैल गयी. मंत्रमुग्ध बर्बर के हाथ से तलवार नीचे गिर पड़ी.
“वहां ऊपर देखो
दुष्टों, यह विचित्र पक्षी कौन सा है? ऐसा पक्षी मैंने पहले कभी नही देखा. सब कुछ छोड़
दो और इस विचित्र पक्षी को पकड़ो. मुझे ये जीवित चाहिए.” बर्बर जानवरों को बेतहासा मारने
में लगे हुए अपने सैनिकों की तरफ देख कर कानों को फाड़ देने वाली घरघराती हुई घिनौनी
आवाज़ में चिल्लाया.
“अद्भुत! क्या यह
दुग्ध-मयूर है? किन्तु दुग्ध-मयूर तो एक काल्पनिक पक्षी है. यह असंभव है किन्तु यदि
जो पक्षी अभी हमने देखा है वह दुग्ध-मयूर है तो महाराज सर्मिश्क आपसे अधिक
सौभाग्यशाली इस ब्रह्मांड में कोई दूसरा नही है क्योंकि इस देव-पक्षी का मांस खाने के बाद आपको विश्व-विजेता बनने से
कोई नही रोक पायेगा, यह भूतकेशी की भविष्यवाणी है, प्रत्येक कीमत पर आप इस पक्षी को प्राप्त करिये
महाराज.” यह स्वर लम्बे बिखरे सफ़ेद बालों और लम्बी सफ़ेद दाढ़ी वाले बर्बर के
तांत्रिक गुरु भूतकेशी का था. अपनी देह पर राख रगड़कर रखने वाला यह वही भूतकेशी था
जिसने बर्बर को विश्व-विजेता बनने के नाम पर इतना क्रूर बना दिया था. भूतकेशी ही
उसे जानवरों और मनुष्यों की बलि देने के लिए प्रेरित करता था. बर्बर को लगता था की
भूतकेशी में अलौकिक शक्तियां थी और वह इंसान को जानवर में बदल सकता था. किसी भी
राजा से युद्ध करने से पहले बर्बर के गुप्तचर उस राज्य में भूतकेसी की अलौकिक
शक्तियों और बर्बर की क्रूरता की अफवाहें फैलाकर नागरिकों और सैनिकों का मनोबल तोड़
देते थे.
“महाराज, भगवान से एक
बार एक भूल हुई. वे एक मौर में रंग भरना भूल गये, उस दूध जैसे रंग के मौर ने भगवान
को श्राप दिया की उनसे समय-समय पर ऐसी भूल होगी और प्रत्येक प्रजाति में कभी-कभी
उस जैसे रंगविहीन प्राणियों का जन्म होगा. वे अन्य प्राणियों, विशेषकर मनुष्य के
लिए या तो अत्यधिक भाग्यशाली या तो अत्यधिक दुर्भाग्य लाने वाले होंगे. श्राप में उसने
यह भी कहा की दुग्ध मयूर केवल सौभाग्य ही लायेंगे और जिस भी मनुष्य को एक दुग्ध
मयूर का सौभाग्य प्राप्त होगा वह मनुष्य चाहे जितनी भी बड़ी इच्छा रखता हो वह तुरंत
पूरी हो जाएगी.” भूतकेशी ने तुरंत ही एक कपोल-काल्पनिक कथा गढ़ कर बर्बर को सुना
दी.
कहानी सुनकर बर्बर के
मस्तिष्क में समस्त सृष्टि पर राज करने का उसका सबसे बड़ा सपना कौंधा और वह और अधिक
आवेश में आ गया. इस बीच उसके पेड़ों पर उतरने चढ़ने और तीरंदाजी में कुशल सैनिक और उनके
शिकारी कुत्ते उन पाँचों मोरों के पीछे लग लग चुके थे. कई वर्षों से लगातार शिकार
करते करते सैनिक यह बात जानते थे की मौर अधिक देर तक नही उड़ सकते हैं. उन्होंने
उड़ते मोरों पर निशाने साधे. पहले माँ और फिर एक-एक करके बाकि तीनों को मार गिराया
गया. सबसे आगे उड़ रहे दुग्ध मयूर को जीवित पकड़ने का आदेश था इसलिए उस पर निशाना
नही साधा गया. घुड़सवार सैनिक सम्पूर्ण वेग से उसके पीछे लगे हुए थे.
उसने उड़ते उड़ते पीछे
मुड़कर देखा. अब वह केवल अकेला बचा था. उसकी माँ और भाई बहन कब के नीचे जमीन पर गिर चुके थे. वह बहुत तेजी से उड़ रहा था. वह
नीचे तीव्र गति से भागते घोड़ों से बच कर दूर निकल जाना चाहता था. वह तब तक उड़ता
रहा जब तक नीचे दुग्धोल वन समाप्त ना हो गया. वह बहुत दूर निकल आया था. अब वह समतल
खुले खेतों के ऊपर उड़ रहा था जहां बीच बीच में घर बने हुए थे. बर्बर के घुड़सवार सैनिक
पीछे छूट गये थे. अब वह और अधिक नही उड़ सकता था. उसे जल्दी ही नीचे उतरना था नही
तो वह प्यास और थकावट से मर सकता था. वह बेहद डरा हुआ और दुखी था और नीचे उतरना उसे
सुरक्षित भी नही लग रहा था.
सुदूर फैले विस्तृत
लहलाते खेतों में बहुत सारे हिरन, मौर, नीलगाय और अन्य जीव-जंतु विचरण कर रहे थे.
वह थोडा नीचे उतरा. उसका डर थोडा कम हुआ. एक घर के बाहर एक लड़की हिरन और मोरों से
घिरी हुई उनको दाना खिला रही थी. वहां पर साफ पानी का भरा हुआ एक बड़ा सा गढ़ा भी था
जिसमे से बहुत सारे पक्षी पानी पी रहे थे.
दस वर्ष की नीली
आँखों और भूरे बालों वाली लड़की श्रद्धा की नजर अचानक ही आसमान की ओर गई. सफ़ेद रंग
के चमकदार पक्षी को वह देखती रह गयी. उसकी नीली आँखे चमक उठी. सभी मौर उस पक्षी को
देख कर जोर-जोर से चिल्लाने लगे. उनको देख कर बाकि पशु-पक्षियों ने भी शोर मचा
दिया. दूसरी तरफ के खेतों में चर रही गायें रम्भाने लगी. वहां पर कोलहाल मच गया.
ऊपर उड़ता दूध के समान सफ़ेद रंग का पक्षी शायद डर गया और वह उड़ते हुए और ऊँचा जाने
लगा.
श्रद्धा ने शोर
मचाते सब पशु-पक्षियों को “हो-हो” करके डांट दिया और कसकर गुंथी हुई अपनी दोनों लम्बी
चोटियों को कन्धों के पीछे करती हुई उस सफ़ेद पक्षी के पीछे भागी.
“अओ, अओ, अओ” वह उस
पक्षी की तरफ देख कर जोर-जोर से चिल्लाई. वह दाना चुगाने के लिए पक्षियों
को इसी प्रकार से बुलाया करती थी.
सफ़ेद रंग का पक्षी अचानक
उड़ता-उड़ता मुडा और श्रद्धा की तरफ आने लगा. शायद उसे श्रद्धा की भाषा समझ में आ
गयी थी. अगले ही पल वह उसके पास जमींन पर उतर आया. श्रद्धा ने उसे गौर से देखा और
देखती ही रह गयी. उसने उसे छूकर देखा- सफ़ेद मखमल.
मौर-एक अविश्वश्नीय रंग
का मौर. मंत्रमुग्ध सी श्रद्दा को पता ही नही चला की कब दुसरे दुसरे मोरों ने उस
अजीब दिखने वाले पक्षी पर आक्रमण कर दिया. श्रद्धा ने उन्हें डांट कर दूर भगा दिया
और सफ़ेद मौर को गोद में उठा लिया. उसने उसे पानी पिलाया और दाना चुगाया. वह अब भी
डरा हुआ था और बार-बार पिहू-पिहू की डरी हुई आवाज़ निकाल रहा था.
श्रद्धा ने अपनी माँ
और पिताजी को आवाज़ लगायी जो पास ही के खेतों में काम कर रहे थे. श्रद्धा की आवाज़
सुनकर उसके चित्रकार चाचा हाथों में रंगों से भरा एक बर्तन और कुंची थामे घर के
अन्दर से बाहर भागे आये. थोड़ी ही देर बाद परिवार के सब सदस्य वहां पर इक्कठा हो
चुके थे. श्रद्धा के दादा-दादी,चाचा-चाची, माँ-पिताजी और उसके छोटे भाई समेत उसका
पूरा परिवार सफ़ेद मौर को देख रहा था. प्रकृति के इस अजूबे को देख कर सभी दंग थे.
सभी ने इस दुर्लभ पक्षी को पालने का निर्णय किया.
अस्त होते सूर्य की
लाल किरणें सफ़ेद मौर को एक अद्भुत रंग में रंग रही थी की तभी अचानक वहां पर जोर
जोर से चिमटा और डमरू बजाते हुए दो भयानक चेहरे वाले नीले वस्त्रों वाले तांत्रिक
भिक्षा मांगने पहुँच गये. उनकी नजर सफ़ेद मौर पर पड़ी. दोनों ने आपस में फुसफुसाकर कुछ बात की.
“इस विचित्र पक्षी
को शीघ्र अति शीघ्र अपने घर से निकाल दो अन्यथा यह तुम्हारे परिवार के लिए घनघोर
दुर्भाग्य लाएगा. तुम शीघ्र ही किसी एक सदस्य को सदा के लिए खो दोगे. इसलिए इस
पक्षी को हमे दे दो.” उनमे से एक तांत्रिक बोला.
श्रद्धा के पिताजी
विनाश की बात सुनकर डर गये.
“पिताजी, इस सुंदर
पक्षी को मैं अपने पास रखना चाहती हूँ, इसे इन दुष्ट तांत्रिको को मत दीजिये. ये
लोग झूठ ही हमें डरा रहे हैं.” श्रद्धा ने अपने पिताजी से विनती की.
दादा जी को भी
श्रद्धा की बात ठीक लगी और उन्होंने दोनों तांत्रिकों को अपनी लाठी से डराते हुए
भगा दिया.
वे दोनों श्राप देने
और परिणाम भुगतने की धमकियां देते हुए खेतों में भाग गये.
श्रद्धा की माँ और
पिताजी ने सफ़ेद मौर को अन्य पशु-पक्षियों से सुरक्षा के लिए एक बड़े से जालीदार
टोकरे से ढक दिया और उसमे उसके लिए पानी और दाना रख दिया. वह सारी रात पिहू-पिहू की
आवाज़ करता रहा.
इसी कारण श्रद्धा ने
उसका नाम पिहू रखा.
सभी को यह नाम बहुत
पसंद आया. सभी बहुत खुश थे और इस बात से बेखबर भी की विनाश की घटनाएँ जल्दी ही
आरम्भ होने वाली हैं.
दूसरे दिन प्रात: ही
सैंकड़ों घोड़ो के पैरों की आवाजों से पूरा क्षेत्र काँप उठा. बर्बर के उग्र सैनिक श्रद्धा
के पिहू की खोज में आ चुके थे. खेतों में लहलाती फसल को रौंदते हुए वे
प्रत्येक घर के सामने रुक रहे थे. शीघ्र ही वे श्रद्धा के घर के सामने पहुँच गये.
“सुनो, महाराज सर्मिश्क
का सन्देश सन्देश सुनो, जो भी घर के अन्दर है वो बाहर आओ,”
उनमे से एक घुड़सवार
ने बहुत तेज़ आवाज़ में कहा.
आवाज़ सुनकर सभी बाहर
की ओर दौड़े.
“एक सफ़ेद रंग का
अद्भुत पक्षी, जो की संभवत: एक मौर है और जिस पर केवल और केवल महाराज सर्मिश्क का
अधिकार है, इस दिशा में उड़ता हुआ आया है. यदि किसी ने ऐसे किसी पक्षी को देखा है
तो वह तुरंत उसके बारे में बता दे. यदि वह पक्षी किसी के पास है तो तुरंत उसे
हमारे हवाले कर दिया जाये, ऐसा करने पर महाराज सर्मिश्क सबको प्राणदान दे सकते
हैं. यदि कल सुबह तक वह पक्षी महाराज को नही मिला तो इस दिशा में स्थित सब
बस्तियों को बर्बाद कर दिया जायेगा और सभी मनुष्यों को तलवारों की भेंट चढ़ा दिया
जायेगा. यदि जीवन से प्रेम है तो कल सुबह तक वह सफ़ेद पक्षी राजमहल पहुँच जाना
चाहिए अन्यथा सब मारे जायेंगे.”
नृशंस सन्देश पढ़कर
सैनिक द्रुत गति से वापस चले गये.
घर के सामने खड़े
परिवार के सदस्यों के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी. वे हक्के-बक्के से एक दुसरे का मुंह
ताक रहे थे.
कुछ अनर्थ होने वाला
था.
“ओह! तो ये बात है, यह
मौर तो बर्बर का निकला. हर बात की शुरुआत “ओह! तो ये बात है,” से करने वाली बिना
दांतों वाली बूढी दादी ने आखिर चुप्पी तोड़ी. “और यदि बर्बर इस मौर को प्राप्त करना
चाहता है तो साफ सी बात है की वह इसे मार कर खाना चाहता होगा.”
“भगवान जाम्भोजी
हमारी रक्षा करें,” चाची बर्बर के सैनिकों की धमकी से बहुत डर गयी थी.
“जाम्भोजी के अवतार
में तो अभी बहुत समय है श्लेशी. प्रश्न यह है की अब क्या करें, क्या इसे बर्बर को
सौंप दें?” पिहू के ऊपर से टोकरे को हटाते हुए श्रद्धा की माँ ने कहा.
“हमारा परिवार धर्म
संकट में फस गया है, यदि हम इस मासूम प्राणी को बर्बर को दे देते हैं तो वह
निश्चित ही इसे मार कर खा जायेगा और भविष्य में स्थापित होने वाले बिश्नोई धर्म की
नींव कमजोर हो जाएगी, और यदि हम इसको उसे नही देते हैं तो राजद्रोह के नाम पर
बर्बर न केवल हमे बल्कि सबको मार डालेगा. दादा जी ने गंभीर स्वर में कहा.
सब चुप हो गये.
अंतत: सबने निर्णय
लिया की प्राणों की कीमत पर भी भविष्य के धर्म की रक्षा की जाएगी. पक्षी को किसी
भी तरह से बचाया जायेगा
पर कैसे? जवाब किसी
के भी पास नही था.
“उसका सफ़ेद रंग ही
उसका शत्रु है” श्रधा को एकाएक सूझा
“उत्तम, अति उत्तम,”
श्रधा के सिर पर हाथ घुमाते हुए चाचा अंदर की ओर लपके. “मेरे पास एक उपाय है.”
राजमहल से बाहर
निकलते समय दोनों तांत्रिक बहुत खुश थे. उनके थैले स्वर्ण मुद्राओं और उपहारों से
भरे हुए थे.
अगले दिन प्रात: ही बर्बर
के मशाल और तलवारधारी सैनिकों ने श्रद्धा के घर को चारों ओर से घेर लिया था.
क्रमश:
07.09.2013
7:07 PM
बहुत बढिया !
ReplyDeleteकृपया आगे क्या हुआ बताइये !
Mam ya to aap yeh kahani aage complete kr nhi to ।
ReplyDeleteReference de dijiye
Thanks