“श्रवण और साणीया सिद्ध”
संतोष पुनिया
बहुत समय पहले की बात है महान मरुस्थल
के बीचो बीच बसे एक गाँव में एक लड़का अपने परिवार के साथ रहा करता था. उसका नाम
श्रवण था. श्रवण गाँव के अन्य लड़कों के साथ सुबह ही गायें चराने के लिए निकल जाता
था. लड़के आपस में खूब खेलते और शाम को गायें लेकर वापिस घर आ जाते. श्रवण विभिन्न प्रकार के पशु पक्षियों की आवाजें निकलने में निपुण था.शेर और मोर की आवाज़
तो वह बिलकुल हुबहू निकल सकता था.
एक बार गायों को चराते-चराते और आपस में
खेलते-खेलते वे बहुत दूर निकल गए. शाम हो गई और अँधेरा घिरने लगा. सब डरने लगे.
“अब हम लोग घर कैसे जायेंगे?” उनमे से एक ने पूछा.
श्रवण ने अपने दादा जी से एक बार सुना था की कैसे वह एक बार रेतीले टीलों में रास्ता भटक गए थे और आसमान के सबसे चमकीले तारे को देखकर उन्होंने
गाँव का रास्ता ढूंढ़ लिया था. उसने मन ही मन चमकीले तारे से गाँव की दिशा का अनुमान लगाया और सभी को गायों के साथ उस दिशा में आगे
बढ़ने को कहा. अँधेरा पुरा घिर आया था. चारों और
झींगुरों और वन्य प्राणियों की डरावनी आवाजें आ रही थी. हवा में हिलते हुए आक के
पौधे आदमी का सा आभास करवा रहे थे. लड़के झुण्ड बना कर चुपचाप गायों के पीछे पीछे
चल रहे थे. वे लोग काफी देर तक चलते रहे. उनको कोई
भी ऐसी जगह नहीं दिखी जहाँ से वे आते समय निकले थे.
“लगता है हम लोग गलत दिशा में चल पड़े हैं” श्रवण ने सबसे कहा.
“हमें रास्ता बदलना होगा”
लड़के यह सोच ही रहे थे कि अब क्या किया जाये कि तभी उन्होंने देखा कि उनसे थोड़ी ही दूर पर चार काले साये खड़े थे. सभी
बुरी तरह से डर गए. साये उनकी ओर बढ़ चले. पास आने पर लड़कों ने
देखा की उन्होंने ऊपर से नीचे तक काले चोगेनुमा कपडे पहन रखे थे और अपना चेहरा भी काले कपडे से ढक रखा था. उन्होंने
आपस में कुछ खुसर-पुसर की और फिर उनमे से एक बोला .
“तुम लोग कौन हो और भगवान साणीया को प्रणाम किये बिना ही उनके क्षेत्र से कैसे जा रहे हो?”
लडको से जवाब देते नही बन रहा था.
उन्होंने तो साणीया का कभी नाम भी
नही सुना था.
“हमारा गाँव यहाँ से थोड़ी दुरी पर है, हम गायें चराते हैं और आज अँधेरा हो
जाने के कारण रास्ता भटक गए हैं, हम किसी साणीया भगवान
को नहीं जानते हैं” आखिर श्रवण ने हिम्मत दिखाई.
सायों ने एक भयंकर अट्टहास किया.
क्या कहा? मुर्ख बालक तुम भगवान् साणीया को नहीं जानते? वे इस सृष्टि के भगवान् हैं, इस नादानी की सजा तुम लोगों को जरुर मिलेगी, स्वयं भगवान् साणीया तुम्हे इसकी सजा देंगे. सब को पकड़ लो. उनमे से एक साये ने
बाकि सब को आदेश दिया.
सायों ने सब लड़कों को घेर लिया और भागने कि कोशिश करने पर मारने कि धमकी दी और उनको लेकर टीले के
ऊपर चढ़ने लगे. उनकी गायें पीछे छूट गयी थी. उन्होंने सायों से उन्हें छोड़ देने
की बहुत प्रार्थना की किन्तु उन्होंने उनकी एक नहीं सुनी.
टीले के ऊपर पहुँच कर सब ने देखा कि कुछ और उसी प्रकार के साये एक बहुत ही डरावने आदमी को घेर कर बैठे
हैं. उस आदमी ने मानव खोपड़ीयों की माला पहन रखी है और उसके काले कपडे हवा में हिल रहे हैं. बीच में जली आग की रोशनी
में दाढ़ी और मूंछो से भरा उसका चेहरा बहुत ही डरावना लग रहा था. उसकी डरावनी आँखें आग के प्रकाश में चमक रही थी.
“ये तुम किसको लेकर आये हो?” भयानक दिखने वाले आदमी ने दूर से ही सायों से पूछा.
“भगवान साणीया की जय हो, भगवान हम आपके लिए मोर का शिकार करने के लिए गए
थे कि हमने देखा ये लड़के रात में बिना
आपकी जय बोले टीले के नीचे से निकल रहे थे. हमने इनको आपकी जय बोलने के लिए कहा तो इन्होने आपको भगवान् मानने से ही इंकार कर दिया. इसलिए हमने इन्हें पकड़ कर सजा के लिए आपके सामने पेश
किया है.” सायों ने जवाब दिया
“अच्छा! ऐसा है? इनकी इतनी हिम्मत? मुर्ख लडको तुमने
भगवान साणीया की शक्तियों पर संदेह करने और मुझे भगवान ना मानने का अपराध किया है, जिसकी सजा तुम्हे जरुर मिलेगी. लेकिन तुम सब को बच्चा जान कर मैं
तुम्हे अपनी गलती सुधारने का एक मौका देता हूँ. यदि तुम अभी भी मेरी जय बोलो तो
मैं ना केवल तुम्हे छोड़ सकता हूँ बल्कि अपनी शक्ति से
गायों समेत तुम्हे तुम्हारे घर भी पहुंचा सकता हूँ.” साणीया ने गुस्से में भर-भराई आवाज़ में
कहा.
“नहीं!” श्रवण ने विरोध किया. “आप चाहे जो भी हैं लेकिन भगवान नहीं हैं, क्योंकि भगवान् एक मात्र श्री जाम्भोजी हैं. वे भगवान् विष्णु के
साक्षात् अवतार हैं और हम उनके अनुयायी बिश्नोई हैं. हम केवल उन्ही की जय बोलते
हैं.”
भयानक आदमी अत्यधिक गुस्से के कारण हांफने लगा. “ले जाओ इन धूर्तों को
और बंद कर दो और तब तक अन्न जल न देना जब तक की ये मुझे भगवान मानने के लिए तैयार ना हो जाये. इनको मैं अपना
अनुयाई बनाना चाहता हूँ. यदि ये फिर भी ना माने तो कल सुबह इनकी
बलि चढ़ा दी जाएगी. इनके ऊपर नजर रखो.”
सायों ने सबको पकड़ लिया और उन्हें लेकर टीले के दूसरी तरफ चलने लगे. लड़कों ने बहुत विरोध किया लेकिन उनकी एक
नहीं चली. सब को ले जाकर टीले के दूसरी तरफ बने एक बड़े से गोल झोंपड़े में बंद कर दिया गया. दो साये वहीं पर रह कर पहरा देने लगे.
सभी बहुत डरे हुए थे और उनको घर की बहुत याद आ रही थी. उन्हें भूख भी
लग गयी थी और उनमे से कुछ रो भी रहे थे. इन सब के विपरीत श्रवण एक कोने में शांत बैठा कुछ सोच रहा था. ठोड़ी
देर बाद वह अचानक से खड़ा हुआ और बोला, “तुम सब रोना बंद करो, रोने से हम लोग यहाँ से छूटने वाले नहीं है, हमें कुछ करना होगा”
“तुम्हे उस आदमी सामने
ही उसे भगवान ना मानने की क्या पड़ी थी? यदि हम उसकी जय बोल देते तो वो हमें
अब तक हमारे घर पहुंचा चुका होता. लेकिन तुमने बिना वजह की बहादुरी दिखाते हुए अपने साथ-साथ हम सबको भी संकट
में डाल दिया. अब कल सुबह वह हम सबको मार देगा. एक लड़के ने श्रवण को
गुस्से में घूरते हुए कहा.
“मैं तो कहता हूँ हमें
साणीया की जय बोल देनी चाहिए और उसे ही भगवान मान लेना चाहिए. कम से कम हम लोग इस
प्रकार से जिन्दा तो रहेंगे.” सबसे छोटे लड़के ने उस की बात का समर्थन करते हुए कहा.
“नहीं!” श्रवण गुस्से से तमतमा गया. “हम लोग बिश्नोई हैं, एक बिश्नोई किसी भी कीमत पर अपने आदर्शों
से समझौता नहीं कर सकता. मेरी माँ ने मुझे ये सिखाया है. इस श्रृष्टि का भगवान एक
है और वे भगवान श्री गुरु जम्भेश्वर जी हैं. किसी पागल व्यक्ति को भगवान् मानने का
पाप करने की बजाय हमें उनका नाम लेना चाहिए. वे हमें इस मुसीबत से जरुर मुक्ति
दिलाएंगे.
श्रवण की बात से सभी में एकनया जोश आया. सब ने मन ही मन भगवान
श्री गुरु जम्भेश्वर जी का नाम लिया. तभी श्रवण को झोंपड़े में पड़ी एक छोटी लाठी मिल गयी. उसने लकड़ी और घास फूस की दीवार में लाठी को फसा कर एक छोटा सा सुराख़ बना लिया. श्रवण ने उस सुराख़ में झांक कर देखा तो पाया की
दोनों साये वहीं पर ही थे और आपस में कुछ बात कर रहे थे. उसने
उन दोनों को वहां से हटाने की युक्ति सोच ली. उसने अपने मुंह के आगे दोनों हाथ रखते हुए मोर की मधुर आवाज निकाली. दोनों साये आवाज़ सुनते ही उछल पड़े.
“तुमने यह आवाज़ सुनी? लगता है कोई मोर आस-पास ही है. चलो उसे पकड़ते हैं और मार कर भगवान् साणीया को भेंट करते हैं. वे बहुत खुश हो
जायेंगे और हमें शक्तियां प्रदान करेंगे” उनमे से एक साये ने उत्साहपूर्वक कहा.
“लेकिन यदि ये लड़के
यहाँ से भाग गए तो?” दुसरे ने चिंता जताई.
उनकी चिंता मत करो, वे झोंपड़े में अच्छी तरह से बंद हैं और भाग नहीं पाएंगे. यदि भाग भी
गए तो वे रास्ता नहीं जानते हैं और हम उन्हें पकड़ लेंगे. पहले साये ने उसे आश्वस्त किया.
तभी श्रवण ने मोर की आवाज़ एक बार फिर इस
प्रकार से निकाली की वह बहुत दूर से आती जान पड़ी. दोनों साये उसी दिशा में ही भाग पड़े.
“चलो हमारे पास इस कैद
से निकलने का एक मौका है, इस लकड़ी की दिवार को बीच में से तोड़ दो” श्रवण ने सब लड़कों से कहा.
सबने मिलकर लकड़ी की दीवार में इतनी जगह बना दी कि एक-एक करके वे सब झोपड़े से बाहर निकल गए और बिना एक पल का भी
समय गवांये सायों से उलटी दिशा में भाग पड़े. उनको नहीं पता था की वे कहाँ और किस ओर भाग रहे थे. उजाला होने तक वे रुकते और भागते रहे.
तभी उनको एक खेत में बने हुए कुंवे पर एक वृद्ध आदमी
दिखा. सब ने वहां पर पानी पिया और उस से उनके गाँव के रास्ते के बारे में पूछा . वृद्ध व्यक्ति ने बताया की वे उसी गाँव की और ही बढ़ रहे थे.
काफी देर तक चलने के बाद वे सब गाँव पहुँच गए. सब के घरवालों का
बुरा हाल था और वे पूरी रात से सोये नहीं थे. कुछ तो
उन्हें ढूंढने के लिए भी गए हुए थे. लड़कों को देख कर सब ने राहत की सांस ली और उनसे इस सब कि वजह जाननी चाही. लड़कों ने पूरी कहानी सब को सुनाई.
पूरी घटना सुनने के बाद सब ने साणीया सिद्ध को सबक सिखाने की ठानी. गाँव के मुखिया के नेत्रित्व में सभी बिश्नोई हाथों में लाठी और डंडे
लेकर साणीया सिद्ध के टीले की और चल पड़े. श्रवण उन सब को रास्ता दिखा रहा था. जब तक वे साणीया के टीले पर पहुंचे तब तक अँधेरा हो चुका था और साणीया सिद्ध काले सायों से घिरा हुआ बीच में आग जला के बड़ी-बड़ी आँखे दिखा कर कुछ बुदबुदा रहा था. बिश्नोइयो ने उसे ललकारा. मुखिया ने साणीया सिद्ध को बच्चों के साथ किये बुरे बर्ताव के लिए माफ़ी मांगने को कहा. उन्होंने उसे प्रपंच एंव आडम्बर
छोड़ कर भगवान् श्री गुरु जम्भेश्वर जी की शरण में आने एंव बिश्नोई बनने को भी कहा.
साणीया सिद्ध ने जवाब में कहा की
वह स्वयं भगवान् है और सभी बिश्नोइयो को उसकी शिष्यता स्वीकार करनी चाहिए. मुखिया के समझाने पर साणीया
सिद्ध बिगड़ गया और बिश्नोइयो को अपशब्द कहने लगा. उसने बिश्नोइयो को उसकी शिष्यता ना स्वीकार करने तथा उसे भगवान् ना मानने कि सूरत में भयंकर दुष्परिणाम भुगतने कि
चेतावनी दी. उसने अपनी झूठी सिद्धियों एंव शक्तियों का बखान करते हुए
बिश्नोइयो में भय उत्पन्न करने कि कोशिश की. उसके भक्तो ने उसकी जय बोलते हुए उसका
साथ दिया.
तब मुखिया ने कहा की यह व्यक्ति गलत संगत में पड़ कर अपना और अन्यों का बहुमूल्य जीवन नष्ट कर रहा है और सब को पाप का भागी बना रहा है. यदि यह इसी तरह से ही पाप कर्मो की तरफ
सब को आकृष्ट करता रहा तो यह निश्चय ही नरक में जायेगा. इसको नरक में जाने से बचाने के लिए तथा पाहल के द्वारा बिश्नोई बना
कर सही रास्ते पर लाने के लिए बल प्रयोग ही एक मात्र रास्ता बचा है.
उन्होंने सबसे कहा की साणीया सिद्ध को टांगों से पकड़ कर टीले से नीचे की तरफ तब तक घसीटा जाये जब तक की वह अपने किये की माफ़ी मांगते हुए भगवान् श्री गुरु
जम्भेश्वर जी की जय ना बोले और पापकर्म और आडम्बरों को त्याग ना दे.
साणीया सिद्ध को टांगो से पकड़ कर टीले से घसीटना आरम्भ
किया गया तो उसके भक्त साँस रोक कर उसके द्वारा किसी चमत्कार की उम्मीद में खड़े
रहे. किन्तु कोई चमत्कार ना तो होना था और ना ही हुआ. साणीया सिद्ध के कपडे पीठ से फट गए और उसकी पीठ काँटों से छिलने लगी. उसने बुरी तरह से चिल्लाना शुरू कर दिया. ऐसा काफी देर तक चलता रहा. साणीया का चिल्लाना अब उसके रोने में बदल गया.
“अभी इसको नीचे से वापिस ऊपर भी घसीटते
हुए पीठ के बल ही लाना है.” मुखिया ने उसे सुनाते हुए बहुत तेज़ आवाज़ में कहा.
“नहीं, मेरे साथ ऐसा मत करो, मुझे छोड़ दो.” साणीया ने रोते-रोते कहा.
“मैं आप सब से माफ़ी मांगता हूँ. मैं
कोई भगवान् नहीं हूँ. मुझे माफ़ कर दो. आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करने के लिए तैयार
हूँ.” साणीया की हिम्मत अब जवाब दे चुकी थी. उसके कपडे भी एक-एक करके उसके शरीर का
साथ छोड़ रहे थे. उसको इस तरह से गिडगिडाते देख कर उसके भक्त हतप्रभ थे.
कुछ देर और घसीटने के बाद अंतत: उसे छोड़ दिया गया.
उसने अपने पापों का प्रायश्चित करने का संकल्प किया और पाप के रास्ते से उसे मुक्त करवाने लिए सभी बिश्नोइयो का धन्यवाद किया.
अपने भक्तों के साथ साणीया सिद्ध समराथल पहुंचा और श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान्
के दर्शन से उसे परम ज्ञान की प्राप्ति हुई. पाहल लेकर वह और उसके अनुयायी बिश्नोई बने और
बिश्नोई धर्म की शिक्षाओं का जीवन पर्यंत प्रचार किया और अनगिनत बिश्नोई बनाये. जिस स्थान पर साणीया सिद्ध को घसीटा गया वहां पर फिर कभी घास नहीं उगी. गाँव में सब ने श्रवण की प्रसंशा यह कहते हुए की कि विप्पति में धर्य ना खोने वाला ही सब का उद्धारक होता है.
संतोष पुनिया
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