Thursday, August 1, 2013



बिश्नोई उपासना पद्धति: विश्व धार्मिक दर्शन का अनूठा आविष्कार
(The Bishnoi worship system: An innovation par excellence in the history of world religious philosophy)
मनुष्य (Homo sapiens sapiens) की उत्पत्ति के अनुमानित दो लाख वर्षों में से लगभग पांच से सात हजार वर्षों का इतिहास हमें किसी न किसी रूप में निबंधित (Documented history) उपलब्ध होता है. इस काल से पूर्व जब लिखने की कला (Writing methods) का आविष्कार नही हुआ था, उस समयावधि को प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric period) कहा जाता है.  1400 घन क्षमता (Cubic capacity) आकार के मस्तिष्कधारी मनुष्य ने लगभग दस हजार वर्ष पूर्व स्थानीकृत कृषि (Localized agriculture) का आविष्कार किया एंव इसी घटना ने खानाबदोश शिकारी (Hunter gatherer) मनुष्य को बस्तियां बसाने के लिए प्रेरित किया. बस्तियां बसाने के लिए निवास बनाये गये और इस प्रकार घर (Home) का आविष्कार हुआ. घास-फूस और लकड़ियों से बने झोंपड़ीनुमा निवास मनुष्य के पहले घर बने. विशाल पेड़ों की प्रजातियाँ (Tree species with large & dense canopies) भी मनुष्य के प्रथम निवास होने के प्रबल दावेदार है.
इसी समयकाल में विभिन्न मानव समूहों के एक साथ रहने से समाज (Society) की उत्पत्ति हुई. समाज में समान प्रथाओं, नियमों, धार्मिक अनुष्ठानों (Religious rituals) आदि पर आधारित समान जीवन शैली विकसित हुई जिसने आदिम मनुष्यों (Primitive humans) में परस्पर सबंध का भाव (Sense of belonging) उत्पन्न किया. समाज के मनुष्यों के जीवन की यही समानता भविष्य के धर्म का बीज थी.
लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व विश्व की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद लिखी गयी और इस प्रकार मानव इतिहास के प्रथम एंव पूर्णतया विकसित धर्म की उत्पत्ति हुई. लेखन की कला के माध्यम से मानव इतिहास के निबंधन (Documentation of human history) की इस प्रथम घटना के लगभग 4500 वर्ष बाद बिश्नोइज्म की स्थापना हुई अर्थात साढ़े चार सहस्राब्दियों (Millennia) तक सभ्य विश्व (Civilized world) बिश्नोइज्म से वंचित रहा.
क्रमिक विकास के क्रम में (During the course of evolution) विश्व के अलग-अलग भागों में अलग-अलग सिद्धांतों एंव दार्शनिक विचारों (Principles & Philosophical thoughts) पर आधारित धर्मों की स्थापना हुई. विश्व धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन (Comparative study of world religions) से हमें उनके मध्य स्थित विपुल आधारभूत भिन्नताएं (basic differences of high magnitude) ज्ञात होती हैं. किन्तु समस्त प्रकार की भिन्नताओं के उपरान्त भी इन सभी धर्मों में दो घटक अनिवार्य रूप से उपस्थित रहें हैं. ये दो घटक हैं:
भगवान एंव उसकी उपासना
(The God & His worship)
दिलचस्प तथ्य यह है की विश्व का कोई भी धर्म भगवान रहित (Godless) नही है. यही नही, ना ही कोई धर्म ऐसा भी है जिसमे भगवान की उपासना, स्तुति अथवा आराधना (Worship) नही की जाती हो. विभिन्न धर्मों में भगवान के विभिन्न स्वरूपों (निराकार, साकार, सूक्ष्मरूप, एक लिंगी, द्विलिंगी, अलिंगी, एकाकी, युगल आदि) को मान्यता दी गयी है. इसके अतिरिक्त विभिन्न धर्म इश्वर की संख्याओं (एकेश्वर अथवा बहुईश्वर) (Monotheism or polytheism) के आधार पर भी विभेदित रहे हैं. उपासना को ईश्वर के प्रति उपासक के अध्यात्मिक प्रेम और समर्पण (Spiritual devotion & dedication) को अभिव्यक्त करने के अतिरिक्त सर्वशक्तिमान, सर्व्यापक एंव सर्वज्ञ ईश्वर (The Omnipotent, Omnipresent & Omniscient God) को प्रसन्न करके उसकी कृपा प्राप्त करने का माध्यम भी माना गया.
उपासना उपासक में जीवन के प्रति आशावान रहने, पापमुक्त होने और प्रसन्नता अनुभव (Feel good) करने के सामाजिक रूप से वैध माध्यम के रूप में भी प्रयोग में लायी गयी तथा सामजिक एंव व्यक्तिगत रूप से धनात्मक प्रभाव (Positive effect on social & personal life) उत्पन्न करने वाली ईश्वर उपासना की विविध प्रणालियाँ (Diverse system of God’s worship) अलग-अलग धर्मों में कालांतर में विकसित हुई.
सनातन धर्म का हवन-मंत्रोचार एंव तपस्या-योग, बौध धर्म का ध्यान-योग (Meditation of Buddhism), ईसाइयत की प्रार्थना (Prayer of Christianity), इस्लाम की अजान, सिख धर्म का पाठ आदि विश्व की प्रमुख ईश्वरोपासना प्रणालियाँ हैं. नव-वेदांत (Neo-Vedant) के जनक स्वामी विवेकानंद ने समाधि को मोक्ष प्राप्त करने के लिए ईश्वरोपासना की सर्वोत्तम विधि माना.
बिश्नोइज्म में हिन्दू धर्म के त्रिदेव (The Hindu trinity) ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से विष्णु (पालनकर्ता भगवान) (The sustainer or preserver God) को उनके निराकार रूप में एकमात्र ईश्वर माना गया है. इस प्रकार बिश्नोइज्म की ईश्वरीय अवधारणा निराकार एकेश्वरवाद (Abstract monotheism) में निहित है. “विष्णु” शब्द की ध्वनि ही सर्वशक्तिशाली ईश्वर का स्वरुप मानी गयी है. बिश्नोइज्म के संस्थापक श्री गुरु जम्भेश्वर ने स्वयं को इन्ही भगवान विष्णु का अवतार माना और विष्णु-उपासना की एक अनुष्ठान रहित, साधारण किन्तु उपासक के ईश्वरिय आनंद की प्राप्ति और उससे प्राप्त होने वाली आत्मिक शांति की सफलता के सन्दर्भ में अत्यधिक प्रभावशाली पद्धति विकसित की.
एक ही अर्ध-काव्यात्मक वाक्य में उन्होंने विश्व की सबसे सफल ईश्वरोपसना पद्धतियों में से एक का सृजन कर दिया- “विष्णु-विष्णु तू भण रे प्राणी” (O! (Human) being, Thou chant the name of Vishnu (to attain salvation). बिश्नोइज्म में उत्पत्ति से होने वाले अस्तित्व (Existence resulting from birth) को नकारात्मक माना गया है. विभिन्न जीवों के रूप में बार-बार संसार में जन्म लेना बिश्नोई अध्यात्म-विज्ञान (Bishnoi metaphysics) के अनुसार दंड है और विभिन्न प्राणियों के रूप में लिए जाने वाले इन दंडस्वरूप जन्मों की अधिकतम संख्या 8400000 (8.4 Million births!) हो सकती है.
बिश्नोइज्म में मोक्ष जीवन का लक्ष्य है एंव मेरे दृष्टिकोण से मोक्ष का अर्थ अस्तित्वहीन (Non-existent) होना है. हमारा अस्तित्व ही हमे मानवीय स्वेंद्नाओ (Humanly sentiments) के लिए भेद्य (Vulnerable) बनाता है. इहलौकिक (Physical earthbound existence) अथवा परालौकिक (Ethereal existence in non-physical forms) दोनों प्रकार का अस्तित्वहीनता (Non-existence) बिश्नोई दर्शन (Bishnoi philosophy) के अनुसार सर्वोत्तम स्थिति है. बिश्नोइज्म में ईश्वर की उपस्थिति उपासक के मस्तिष्क में मानवीय कल्पना (Human imagination) द्वारा उत्पन्न किसी अर्ध-निर्मित प्रतिबिम्ब (Half-formed reflection) के रूप में न होकर अद्वितीय रूप से ध्वन्यात्मक (Phonetic presence of God) है. ईश्वर की ध्वन्यात्मक उपस्थिति की अवधारणा दुर्लभ है एंव बिश्नोइज्म इस सन्दर्भ में एक अनूठा स्थान रखता है.
विष्णु शब्द के उच्चारण से उत्पन्न होने वाली ध्वनि को सर्वव्यापी एंव सर्वशक्तिशाली ईश्वर का ध्वन्यात्मक एंव एकमात्र स्वरुप मानने वाली यह अनूठी पद्धति “विष्णु” शब्द के पुनरावृत्त और निरंतर उच्चारण (जप) पर आधारित है. विष्णु शब्द के इस पुनरावृत्त उच्चारण का आरम्भ ‘ॐ’ के उच्चारण से किया जाता है. श्री गुरु जम्भेश्वर ने बिश्नोइज्म की ईश्वरोपासना पद्धति के रूप में विश्व को ‘जप योग’ (Japa Yoga) का उपहार दिया.
पांच शताब्दियों से भी अधिक का सफल अस्तित्व बिश्नोई उपासना प्रणाली के प्रभावशाली एंव सफल होने का प्रबल प्रमाण है. यह उपासना पद्धति न केवल दार्शनिक वरन सामाजिक एंव समकालीन विश्व के परिदृश्य में व्यवहारिक रूप से भी एक महान खोज है.
व्यवहारिक इसलिए की बिश्नोइज्म के ‘जप योग’ के लिए किसी विशेष स्थान, परिधान, अनुष्ठान, सामग्री अथवा किसी व्यवस्था की आवश्यकता नही होती है. तात्पर्य यह की एक बिश्नोई कहीं भी किसी भी स्थान अथवा स्थिति से ईश्वरोपासना कर सकता है. आधुनिक समय के व्यस्त दैनिक जीवन में आस्तिकों के लिए बिश्नोई उपासना पद्धति एक वरदान है.
बिश्नोइज्म की यह अध्यात्मिक खोज उत्तर-पश्चिमी भारत में इतनी अधिक लोकप्रिय हुई की इसे बहुत से अन्य सम्प्रदायों, साधू संतो और धार्मिक संस्थाओं के द्वारा (नाम जपना) सफलतापूर्वक अपनाया एंव अनुयाइयों को अध्यात्मिक रूप से लभान्वित किया.
बिश्नोई उपासना पद्दति ‘जप योग’ को निबंधन के द्वारा स्थापित (Establishment through documentation) करने का मेरा यह प्रयास है तथा निकट भविष्य में यह पद्धति विश्व की एक प्रमुख ईश्वरोपासना पद्धति बनकर सूदूर प्रसारित होगी, ऐसा मैं विश्वास रखती हूँ.
संतोष पुनिया
 

1 comment:

  1. शुभम् बहन.
    सर्वप्रथम मैं बिश्नोईज्यम की उपासना पद्धति के निंबधन के लिए हार्दीक आभार व्यक्त करता हुँ . आपका यह प्रयास
    निश्चित ही
    बिश्नोई साहित्य की नींव समद्धि में मील का पत्थर साबित होगा. भगवान श्री ने कहा है विष्णु विष्णु तूं भण रे प्राणी|
    विष्णु भणंता अनंत गुणु ।
    विष्णु नाम स्मरण से ही अनेक प्रकार के विकारों एवं अवगुणों से छुटकारा पाया जा सकता है. विष्णु स्मरण में अनंत गुण है . "विष्णु विष्णु तूं भण रे प्राणी" ( जप योग) द्वारा ही हम कर्म बंधन से मुक्ति पा सकते हैं . विष्णु मय प्रकति द्वारा ही मानवमात्र सभी पापबंधनो को तोड़ परमसत्ता मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है. जप योग के साथ भगवान श्री गुरु जांभोजी ने मानवकल्याणार्थ कर्म योग प्रोक्त किया . मनुष्य को अशुभकर्म का परित्याग कर शुभ कर्म करने चाहिए. कर्म योग मानव कल्याण के साथ अर्थ, काम, मोक्ष की प्रेरणा देने वाला है

    अंतः में बहन सतोषजी के लिए दो शब्द "श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्"

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