श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान् ने कहा: कुपात्र को दान देने का पाप सुपात्र
को दान देने के पुण्य से अधिक है. कुपात्रों को पहचानों! पाप मत कमाओ!
बिश्नोई बनो!
This blog is about the Bishnoi community of India which is the largest human group devoted to conservation of environment. The Bishnois have sacrificed themselves for the sake of plants and animals time to time. 363 Bishnois sacrificed themselves in order to protect the trees from being cut down in 1730AD in India. Despite all that the community remains unknown and literally obscure. Why? The blog attempts to answer!
Sunday, July 1, 2012
Bishnoi Phylosophy
सबद वाणी सबद संख्या ३ में भगवान् जाम्भोजी कहते हैं:
मैं सुगंध का मूल हूँ. पदार्थ की प्रकृति में मैं उपस्थित हूँ. मैं अपार्थिव हूँ. मेरा अस्तित्व स्वत: है व इसे बनाये रखने के लिए मुझे भौतिक भोगों की आवश्यकता नही है. मैं तो तुम्हारे हृदय में अवस्थित हूँ और तुम मुझे चार लोकों में ढूंढ़ रहे हो. एक सांस लेने की समयावधि में मैंने इस श्रृष्टि की रचना की है. अग्नि व पवन की तरह चंचल तुम्हारी मनोवृति का सृजन भी मैं ही करता हूँ. अग्नि को मैंने निर्णय लेने की क्षमता प्रदान नही की है. यही विशेषता उसकी रचनात्मक एंव विध्वंशात्मक प्रकृति का निर्माण करती है. मानव वृति में मैंने क्रोध को अग्नि रूप में समाहित किया है, जिसकी रचनात्मक विशेषता से तुम मोक्ष प्राप्त कर सकते हो, अन्यथा यह तुम्हे असंख्य योनियो से जन्म लेने पर विवश कर देगा. सृष्टि में मैंने सबको क्षयवान शरीर दिया है इसलिए प्राणियों को इसकी रक्षा करने की सदैव आवश्यकता रहेगी. यह नियम मुझ पर चरितार्थ नही होता है क्योंकि मैं नियमों से परे हूँ. सूर्य से लेकर जुगनू तक प्रकाश के समस्त स्रोतों में मैं उपस्थित हूँ.
मैं सुगंध का मूल हूँ. पदार्थ की प्रकृति में मैं उपस्थित हूँ. मैं अपार्थिव हूँ. मेरा अस्तित्व स्वत: है व इसे बनाये रखने के लिए मुझे भौतिक भोगों की आवश्यकता नही है. मैं तो तुम्हारे हृदय में अवस्थित हूँ और तुम मुझे चार लोकों में ढूंढ़ रहे हो. एक सांस लेने की समयावधि में मैंने इस श्रृष्टि की रचना की है. अग्नि व पवन की तरह चंचल तुम्हारी मनोवृति का सृजन भी मैं ही करता हूँ. अग्नि को मैंने निर्णय लेने की क्षमता प्रदान नही की है. यही विशेषता उसकी रचनात्मक एंव विध्वंशात्मक प्रकृति का निर्माण करती है. मानव वृति में मैंने क्रोध को अग्नि रूप में समाहित किया है, जिसकी रचनात्मक विशेषता से तुम मोक्ष प्राप्त कर सकते हो, अन्यथा यह तुम्हे असंख्य योनियो से जन्म लेने पर विवश कर देगा. सृष्टि में मैंने सबको क्षयवान शरीर दिया है इसलिए प्राणियों को इसकी रक्षा करने की सदैव आवश्यकता रहेगी. यह नियम मुझ पर चरितार्थ नही होता है क्योंकि मैं नियमों से परे हूँ. सूर्य से लेकर जुगनू तक प्रकाश के समस्त स्रोतों में मैं उपस्थित हूँ.
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