Saturday, May 19, 2012

This story was published in April 2012 issue of Amar Jyoti. Kindly bear with my malfunctioning scanner.


Wednesday, May 16, 2012

बिश्नोइज्म का पहचान संकट: एक अवलोकन


बिश्नोइज्म  का पहचान संकट: एक अवलोकन
पांच शताब्दी पूर्व स्थापित  बिश्नोइज्म  श्रेष्ठ समकालीन धार्मिक विचारधाराओं में से एक हैं. वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित यह व्यवहारिक विचारधारा एतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत ही महत्वपूर्ण रही है. इस धार्मिक क्रांति ने एक बड़ी जनसँख्या को धार्मिक जटिलताओं एंव आडम्बरों से मुक्ति दिलाई तथा उनके जीवन को सुगम एंव सुखी बनाया. बिश्नोइज्म की व्यावहारिकता, समृद्ध इतिहास, संस्कृति तथा जीवों व प्रयावरण रक्षार्थ दिए गए बलिदान सदा ही लोगो को आकर्षित करते रहे हैं.  पर्यावरण रक्षा को समर्पित बिश्नोई समुदाय जैसा दूसरा समुदाय समस्त विश्व में नहीं है. सहानुभूति, करुणा, तथा सह-अस्तित्व की भावना इस धार्मिक विचारधारा के आधार में है. वृक्षों अथवा वन्य प्राणियों के लिए सहज ही प्राण देने का उदहारण ब्रह्मांड में दुर्लभ है. बिश्नोइज्म में प्रभावित करने की अदभुत क्षमता है. जड़ अथवा चेतन, जो भी इसके संपर्क में आता है वह प्रभावित होता है. साधारण प्रतीत होने वाला बिश्नोइज्म प्रभावित करने में असाधारण है. 
सन्दर्भ का एक दूसरा पहलू भी है जो सुखद नहीं है. समस्त ऐतिहासिक महानताओं, आत्मबलिदानोंव्यवहारिक  तथा दार्शनिक श्रेष्ठताओं तथा प्रभावित करने की अदभुत क्षमताओं के उपरांत भी बिश्नोई समुदाय राष्ट्रीय एंव वैश्विक स्तर पर एक अज्ञात समुदाय ही है. लोकप्रियता के स्तर पर बिश्नोइज्म का स्थान किसी भी प्रकार से न तो संतोषजनक है और ना ही पर्याप्त भी है. कुछ विशेष बिश्नोई बहुल क्षेत्रों के अतिरिक्त इस महान समुदाय के बारे में जानकारी रखने वाले लोग विरले ही है. इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण यह है की बिश्नोई बाहुल क्षेत्रों के बहार जब भी हम अपना परिचय एक बिश्नोई के रूप में देते हैं तो हमसे पूछा जाता है की बिश्नोई क्या होते हैं? यह प्रश्न बिश्नोइज्म के देश-व्यापी अप्रसार एंव अज्ञात स्थिति का ही द्योतक है. क्यों एक क्रन्तिकारी धार्मिक विचारधारा समसामयिक एंव प्रासंगिक होते हुए भी एक क्षेत्र विशेष तक सिमित होकर रह गयी? क्या हमारे पूर्वजों का बलिदान व्यर्थ चला गया? समय मंथन का है. 
बिश्नोइज्म को अन्य समकालीन धर्मों अथवा सम्प्रदायों के समान राजाश्रय ना मिल पाना, कालक्रम में इसका वंशानुगत हो जाना, एक भाषा एंव एक संस्कृति जो की भौगोलिक धरातल पर अलग-अलग बिश्नोइयो में परस्पर सबंधबोध  की भावना  उत्पन्न कर सके, का विकसित ना हो पाना, अबिश्नोई वर्गों के प्रति अस्पृश्यता, विद्वान एंव समर्पित साधु-संत जो इसे अन्य लोगों तक ले जाते का नितान्त अभाव, समय के साथ विकसित हुआ आत्मकेंद्रित दृष्टिकोण, बिश्नोइज्म के अनुयाईओं की स्वधर्म प्रक्षेपण एंव प्रसार में अरुचि, बिश्नोइयो में परस्पर व्रचस्व की लड़ाई, बिश्नोइज्म का एक शेक्षिक अध्ययन विषय के रूप में विकसित ना हो पाना इत्यादि इसके अप्रसार तथा इसके फलस्वरूप उत्पन्न हुई अज्ञातता की स्थिति के कुछ मुख्य व सपष्ट कारण रहे. अज्ञातता अस्तित्वहीनता के सामान है. यह स्थिति बिश्नोइज्म में विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय एंव स्वीकृत धार्मिक विचारधारा बनने के सामर्थ्य होने के उपरांत भी है. 
पर्यावरण संरक्षण व प्रबंधन में बिश्नोइयो के पारम्परिक ज्ञान तथा समर्पण जैव विविधता क्षरण, जलवायु परिवर्तन तथा वैश्विक तापमान वृद्धि से झुझते विश्व के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकते है. विश्व को एक संभावित दुखांत से बचाने में बिश्नोई समुदाय की भूमिका निर्णायक हो सकती है. इसके लिए आवश्यकता है की बिश्नोइज्म नेपथ्य के अंधकार से उबार कर वैश्विक पटल पर दृश्यमान हो. बिश्नोइज्म की अज्ञात स्थिति को परिवर्तित करने के लिए सही दिशा में सामूहिक तथा समर्पित प्रयास करने होंगे क्योंकि वर्तमान अज्ञात स्थिति सुनहरे भविष्य का संकेत कदापि नहीं मानी जा सकती. बिश्नोइज्म के सम्पूर्ण तंत्र में कुछ आधारभूत परिवर्तन एंव सूत्रपात समय की आवश्यकता है. बिश्नोइज्म के समुख प्रकट पहचान  संकट को ना तो अब नजरंदाज किया जा सकता है और ना ही इस से इंकार किया जा सकता है. बिश्नोइज्म के गौरवशाली अतीत को अनुसंधान के माध्यम से निबंधित करवा कर बिश्नोई इतिहास के रूप में सहेजा जाना आवश्यक है. निबंधित इतिहास आगामी पीढ़ियों तथा अन्य लोगों की हमारे धर्म में रूचि जगाने में अवश्य ही सफल होगा. हमारी सांस्कृतिक धरोहरें प्रबंधन तथा उनके संरक्षण के प्रति हमारी अरुचि का शिकार होकर विभिन्न स्थानों पर बिखरी पड़ी है. इनको ह्रास के लिए छोड़ दिया जाना बिश्नोइज्म के लिए शुभ संकेत नहीं है. इन सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्व की वस्तुओं, पांडूलिपिओं, मंदिरों, स्मारकों, तालाबों, एतिहासिक वृक्षों आदि का संरक्षण तथा प्रबंधन वैज्ञानिक विधि से किया जाना होगा ताकि ये दीर्घजीवी होकर बिश्नोइज्म में रूचि जगाने में निरंतर सफल रहें. बिश्नोई संस्कृति को उभारने के लिए इसके विभिन्न घटक जैसे त्यौहार, पकवान एंव पाक शैली, वेशभूषा आदि को स्थापित किया जाना एंव इनको लोकप्रिय बनाने के प्रयास किये जाने आवश्यक हैं. एकरूप बिश्नोई संस्कृति विभिन्न भौगोलिक  क्षेत्रों में निवास करने वाले बिश्नोइयो में परस्पर सम्बन्धबोध एंव गर्व की भावना का स्रोत बनेगी. सांस्कृतिक रूप से संपन्न बिश्नोई समाज के लिए इसके साहित्यिक पक्ष का सुदृढ़ होना आवश्यक है. इसके लिए बिश्नोई साहित्यकारों व बिश्नोई कलाकारों को पुरुस्कारों व अन्य सम्मान के माध्यम से प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. शिक्षा के माध्यम से धर्मों का प्रचार-प्रसार एक अत्यंत ही प्राचीन किन्तु सफल तरीका है. बिश्नोइज्म के प्रसार को शिक्षा से सम्बंधित करने के लिए बिश्नोई मिशनरी स्कूलों की स्थापना करना एक उपाय है. बिश्नोइज्म के प्राचीन किन्तु विलुप्त हुए "श्री जम्भाणी चिन्ह" को लोकप्रिय बनाये जाने के प्रयास करने होंगे. विश्व के सफलतम धर्मों ने धार्मिक चिन्हों को प्रचार एंव प्रसार के शक्तिशाली माध्यम के रूप में प्रयोग किया है.   "श्री जम्भाणी चिन्ह"  बिश्नोइज्म को पहचान संकट से उबार कर इसका वांछित प्रसार करने में मील का पत्थर साबित होगा. विश्व की कोई भी भाषा "बिश्नोई" शब्द को मान्यता नहीं देती है एंव इसके लिए "बिश्नोई" शब्द को विभिन्न भाषाओँ के शब्दकोशों में सम्मिलित करवाए जाने के प्रयास अभी किये जाने शेष हैं. 
अब सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है की यह सब करेगा कौन? उत्तर यह है की ये सब हम सबको सामूहिक रूप से समाज की सर्वोच्च संस्था के माध्यम से करने होंगे. अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा बिश्नोइज्म की सर्वमान्य एंव सर्वोच्च संस्था है. इस संस्था को और अधिक दृश्यमान, प्रभावी तथा अग्रसक्रिय  बनाया जाना आवश्यक है. इसके लिए इस संस्था का एक लिखित संविधान, अधिदेश एंव लक्ष्य होने चाहिए. इसके  सदस्य  तथा अध्यक्ष चुन ने की एक पारदर्शी तथा वैधानिक प्रक्रिया का अस्तित्तव में होना आवश्यक है. विभिन्न क्षेत्रों एंव विषयों में विशेषज्ञ लोगों को इस संस्था का सदस्य चुनना होगा जो अपने अपने क्षेत्र अथवा विषय में बिश्नोइज्म को विकसित एंव प्रसारित करने में अपना योगदान दे सकें. 
उपरोक्त वर्णित सभी कार्य अथवा प्रयास एक प्रभावी बिश्नोई सर्वोच्च संस्था के माध्यम से "मिशन मोड" में ही संपन्न किये जा सकते हैं. यदि हम अकर्मण्यता त्यागकर बिश्नोइज्म की सुदृढ़ता के प्रयत्न  करें तो निश्चित ही भविष्य बिश्नोइज्म का होगा क्योंकि प्रकृति के साथ सहिष्णुता की विशेषता बिश्नोइज्म को एक भविष्यवादी विचारधारा बनती है. 

संतोष पुनिया